राखी के धागों से जुड़ी है मानवीय संवेदनाएं:रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएं
रक्षा बंधन हिन्दू धर्म तथा जैन धर्म में मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय और खुशियों से भरा हुआ त्योहार है जो भ्रातृभावना और सहयोग का प्रतीक माना जाता है और ये त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है,रक्षा बंधन में राखी या रक्षा सूत्र का सबसे अधिक महत्व है,राखी को कच्चे धागे ,रंगीन कलावे,रेशमी धागे अथवा स्वर्णजड़ित धागे से अच्छी तरह बनाया जाता है और इस दिन सभी बहनें अपने अपने भाइयों के कलाई में इस धागे को बांधती हैं और उन्हें मिठाईयां भी खिलाती हैं और भगवान से उनकी लंबी आयु और उनके सफलता की प्रार्थना करती हैं और भाई बदले में उन्हें उपहार और हमेशा उनकी जीवन भर रक्षा करने का वचन देते हैं,राखी का त्योहार भाई बहनों में प्रेम के संदेश को भी बखूबी दिखाता है।
राखी के त्योहार की उत्पत्ति का पूर्ण रूप से दावा तो नहीं किया जाता लेकिन हां भविष्य पुराण से इतना ज़रूर कहा जाता है कि एक बार देव और दानवों में युद्ध शुरू हुआ तो दानव हावी होने लगे थे तब भगवान इंद्र ,बृहस्पति के पास गए वहीं इंद्र की पत्नी इंद्राणी भी ये सब देख रही थीं उन्होंने रेशम का धागा एक मंत्र से पवित्र करके इंद्र की कलाई में बांध दिया और फिर इंद्र उस युद्ध में विजय भी प्राप्त किए तब से ही श्रावण पूर्णिमा के दिन धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है।
एक और मान्यता है श्री कृष्ण और द्रौपदी को लेकर,जिसमें युद्ध के दौरान श्री कृष्ण का एक हाथ चोटिल हो जाता है तब द्रौपदी अपने साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर श्री कृष्ण के हाथ में बांध देती हैं और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को हर संकट से बचाने का वचन भी दिया।
आधुनिक युग में रक्षा सूत्र को पेड़ में भी बांधा जाता है जिस से उसकी रक्षा की जा सके तो इस तरह से एक रक्षा सूत्र अथवा रक्षा बंधन का ये त्योहार मानवीय संवेदना का भी प्रतीक बन रहा है जिसमें इंसान रक्षा सूत्र के साथ अपनी बहन की रक्षा का वचन भी देता है और प्यार भी।
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